हसन Poetry (page 12)
उठी है जो क़दमों से वो दामन से अड़ी है
सूफ़ी तबस्सुम
सुकून-ए-क़ल्ब ओ शकेब-ए-नज़र की बात करो
सूफ़ी तबस्सुम
शजर शजर निगराँ है कली कली बेदार
सूफ़ी तबस्सुम
रस्म-ए-मेहर-ओ-वफ़ा की बात करें
सूफ़ी तबस्सुम
नाला-ए-सबा तन्हा फूल की हँसी तन्हा
सूफ़ी तबस्सुम
मिटी मिटी हुई यादों के दाग़ क्या जलते?
सूफ़ी तबस्सुम
किस ने ग़म के जाल बिखेरे
सूफ़ी तबस्सुम
ख़ामोशी कलाम हो गई है
सूफ़ी तबस्सुम
जब अश्क तिरी याद में आँखों से ढले हैं
सूफ़ी तबस्सुम
इस आलम-ए-वीराँ में क्या अंजुमन-आराई
सूफ़ी तबस्सुम
हुस्न को जो मंज़ूर हुआ
सूफ़ी तबस्सुम
ग़म-नसीबों को किसी ने तो पुकारा होगा
सूफ़ी तबस्सुम
बुझी बुझी सी सितारों की रौशनी है अभी
सूफ़ी तबस्सुम
अगरचे आँख बहुत शोख़ियों की ज़द में रही
सूफ़ी तबस्सुम
आँखें खुली थीं सब की कोई देखता न था
सूफ़ी तबस्सुम
ये जो काली घटा छाई हुई है
सुदर्शन कुमार वुग्गल
तिरी ज़ुल्फ़ के पेच-ओ-ख़म देखते हैं
सुदर्शन कुमार वुग्गल
मुझे मलाल में रखना ख़ुशी तुम्हारी थी
सुबहान असद
वो नग़्मगी का ज़ाइक़ा उस की सदा में था
सोहन राही
यारब सराब-ए-अहल-ए-हवस से नजात दे
सिराजुद्दीन ज़फ़र
हम दिल-ए-ज़ोहरा-वशाँ में ख़ालिक़-ए-अंदेशा हैं
सिराजुद्दीन ज़फ़र
दर-ए-मय-ख़ाना से दीवार-ए-चमन तक पहुँचे
सिराजुद्दीन ज़फ़र
यौम-ए-आज़ादी
सिराज लखनवी
यूँ सुबुक-दोश हूँ जीने का भी इल्ज़ाम नहीं
सिराज लखनवी
ये वो आज़माइश-ए-सख़्त है कि बड़े बड़े भी निकल गए
सिराज लखनवी
तुझे पा के तुझ से जुदा हो गए हम
सिराज लखनवी
निगाह-ए-यार यूँही और चंद पैमाने
सिराज लखनवी
न कुरेदूँ इश्क़ के राज़ को मुझे एहतियात-ए-कलाम है
सिराज लखनवी
मुझे अब हवा-ए-चमन नहीं कि क़फ़स में गूना क़रार है
सिराज लखनवी
ईमाँ की नुमाइश है सज्दे हैं कि अफ़्साने
सिराज लखनवी
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