हसन Poetry (page 11)
जाने किस मोड़ पे दे हिज्र की सौग़ात मुझे
सय्यद अमीन अशरफ़
किस तरह ज़िंदा रहेंगे हम तुम्हारे शहर में
सय्यद अहमद शमीम
हम ने जो उस की मिदहतों से कान भर दिए
सय्यद अाग़ा अली महर
सती
सुरूर जहानाबादी
पदमनी
सुरूर जहानाबादी
गंगा जी
सुरूर जहानाबादी
बुलबुल ओ परवाना
सुरूर जहानाबादी
न किसी को फ़िक्र-ए-मंज़िल न कहीं सुराग़-ए-जादा
सुरूर बाराबंकवी
कहे तो कौन कहे सरगुज़श्त-ए-आख़िर-ए-शब
सुरूर बाराबंकवी
कभी अपने इश्क़ पे तब्सिरे कभी तज़्किरे रुख़-ए-यार के
सुरूर बाराबंकवी
जब तलक रौशनी-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र बाक़ी है
सुरूर बाराबंकवी
मेरे ख़ुश-आइंद-मुस्तक़बिल का पैग़म्बर भी तू
सुलतान रशक
वो सर से पाँव तलक चाहतों में डूबा था
सुलेमान ख़ुमार
जो तेरे हुस्न में नर्मी भी बाँकपन भी है
सुलैमान अरीब
वो मिज़ाज दिल के बदल गए कि वो कारोबार नहीं रहा
सुलैमान अहमद मानी
नंग-ए-एहसास है अंदोह-ए-ग़रीब-उल-वतनी
सुलैमान आसिफ़
हँस दिए ज़ख़्म-ए-जिगर जैसे कि गुल-हा-ए-बहार
सुहैल काकोरवी
मैं खो गया तो शहर-ए-फ़न में दस्तियाब हो गया
सुहैल अहमद ज़ैदी
उठिए तो कहाँ जाइए जो कुछ है यहीं है
सुहा मुजद्ददी
शौक़-ए-बुतान-ए-अंजुमन-आरा लिए हुए
सुहा मुजद्ददी
ख़राब-ए-दीद को यूँ ही ख़राब रहने दे
सुहा मुजद्ददी
जो कुछ हुआ सो हुआ अब सवाल ही क्या है
सुहा मुजद्ददी
इसी आशिक़ी में पैहम हुई ख़ानुमाँ-ख़राबी
सुहा मुजद्ददी
'अंजुम' पे जो गुज़र गई उस का भला हिसाब क्या
सूफ़िया अनजुम ताज
नज़्म
सूफ़ी तबस्सुम
अजनबी ख़त-ओ-ख़ाल
सूफ़ी तबस्सुम
ज़िंदगी क्या है इक सफ़र के सिवा
सूफ़ी तबस्सुम
वो वुसअतें थीं दिल में जो चाहा बना लिया
सूफ़ी तबस्सुम
वो हुस्न को जल्वा-गर करेंगे
सूफ़ी तबस्सुम
वो हुस्न को जल्वा-गर करेंगे
सूफ़ी तबस्सुम
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