बदन Poetry (page 44)
मिरा बदन है मगर मुझ से अजनबी है अभी
आबिद आलमी
किसी मक़ाम पे हम को भी रोकता कोई
आबिद आलमी
ख़्वाब में गर कोई कमी होती
आबिद आलमी
ये कौन मेरे अलावा मिरे वजूद में है
अब्दुर्राहमान वासिफ़
चुप
अब्दुर्रशीद
फटे पुराने बदन से किसे ख़रीद सकूँ
अब्दुर्रहीम नश्तर
वो सो रहा है ख़ुदा दूर आसमानों में
अब्दुर्रहीम नश्तर
अगर हो ख़ौफ़-ज़दा ताक़त-ए-बयाँ कैसी
अब्दुर्रहीम नश्तर
आओ आज हम दोनों अपना अपना घर चुन लें
अब्दुल्लाह कमाल
उस की जाम-ए-जम आँखें शीशा-ए-बदन मेरा
अब्दुल्लाह कमाल
बड़ा मुख़्लिस हूँ पाबंद-ए-वफ़ा हूँ
अब्दुल्लाह कमाल
अभी गुनाह का मौसम है आ शबाब में आ
अब्दुल्लाह कमाल
सजाते हो बदन बेकार 'जावेद'
अब्दुल्लाह जावेद
कभी प्यारा कोई मंज़र लगेगा
अब्दुल्लाह जावेद
जानिब-ए-दर देखना अच्छा नहीं
अब्दुल्लाह जावेद
अगर वो गुल-बदन दरिया नहाने बे-हिजाब आवे
अब्दुल वहाब यकरू
साकिन है कोई और वतन और किसी का
अब्दुल वहाब सुख़न
ज़ुल्फ़-ए-बरहम सँभाल कर चलिए
अब्दुल हमीद अदम
ग़ुबार-ए-दर्द से सारा बदन अटा निकला
अब्दुल हफ़ीज़ नईमी
बहार बन के ख़िज़ाँ को न यूँ दिलासा दे
अब्दुल हफ़ीज़ नईमी
भूलों उन्हें कैसे कैसे कैसे
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
नेक गुज़रे मिरी शब सिद्क़-ए-बदन से तेरे
अब्दुल अहद साज़
दम-ए-वापसीं
अब्दुल अहद साज़
सवाल बे-अमान बन के रह गए
अब्दुल अहद साज़
खिले हैं फूल की सूरत तिरे विसाल के दिन
अब्दुल अहद साज़
जाने क़लम की आँख में किस का ज़ुहूर था
अब्दुल अहद साज़
हिसार-ए-दीद में जागा तिलिस्म-ए-बीनाई
अब्दुल अहद साज़
आज फिर शब का हवाला तिरी जानिब ठहरे
अब्दुल अहद साज़
तिलिस्म-ए-ख़्वाब से मेरा बदन पत्थर नहीं होता
अब्बास ताबिश
वो हँसती है तो उस के हाथ रोते हैं
अब्बास ताबिश
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