बदन Poetry (page 43)
हलाल रिज़्क़ का मतलब किसान से पूछो
अादिल रशीद
जो बन-सँवर के वो इक माह-रू निकलता है
अादिल रशीद
तंहाई
आदिल मंसूरी
सफ़ेद रात से मंसूब है लहू का ज़वाल
आदिल मंसूरी
नज़्म
आदिल मंसूरी
ये फैलती शिकस्तगी एहसास की तरफ़
आदिल मंसूरी
वो तुम तक कैसे आता
आदिल मंसूरी
इबलाग़ के बदन में तजस्सुस का सिलसिला
आदिल मंसूरी
तअल्लुक़ अपनी जगह तुझ से बरक़रार भी है
अदीम हाशमी
शोर सा एक हर इक सम्त बपा लगता है
अदीम हाशमी
मुफ़ाहमत न सिखा जब्र-ए-नारवा से मुझे
अदीम हाशमी
जब बयाँ करोगे तुम हम बयाँ में निकलेंगे
अदीम हाशमी
सहरा-ओ-दश्त-ओ-सर्व-ओ-समन का शरीक था
अदील ज़ैदी
शब को हर रंग में सैलाब तुम्हारा देखें
अबुल हसनात हक़्क़ी
उस वक़्त जान प्यारे हम पावते हैं जी सा
आबरू शाह मुबारक
क्या सबब तेरे बदन के गर्म होने का सजन
आबरू शाह मुबारक
तीरा-रंगों के हुआ हक़ में ये तप करना दवा
आबरू शाह मुबारक
शब-ए-सियाह हुआ रोज़ ऐ सजन तुझ बिन
आबरू शाह मुबारक
नालाँ हुआ है जल कर सीने में मन हमारा
आबरू शाह मुबारक
क्या शोख़ अचपले हैं तेरे नयन ममोला
आबरू शाह मुबारक
जलते थे तुम कूँ देख के ग़ैर अंजुमन में हम
आबरू शाह मुबारक
बढ़े है दिन-ब-दिन तुझ मुख की ताब आहिस्ता आहिस्ता
आबरू शाह मुबारक
वसवसे दिल में न रख ख़ौफ़-ए-रसन ले के न चल
अबरार किरतपुरी
ख़ुश-बख़्त हैं आज़ाद हैं जो अपने सुख़न में
अबरार हामिद
आगे बढ़ने वाले
अबरार अहमद
क्यूँ न अपनी ख़ूबी-ए-क़िस्मत पे इतराती हवा
आबिद मुनावरी
क्यूँ न अपनी ख़ूबी-ए-क़िस्मत पे इतराती हवा
आबिद मुनावरी
वो इक निगाह जो ख़ामोश सी है बरसों से
आबिद आलमी
तुम ने जब घर में अंधेरों को बुला रक्खा है
आबिद आलमी
तुम ने जब घर में अँधेरों को बुला रक्खा है
आबिद आलमी
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