बात Poetry (page 92)
गुलशन गुलशन शोला-ए-गुल की ज़ुल्फ़-ए-सबा की बात चली
असग़र सलीम
गुलशन गुलशन शो'ला-ए-गुल की ज़ुल्फ़-ए-सबा की बात चली
असग़र सलीम
ग़ुबार सा है सर-ए-शाख़-सार कहते हैं
असग़र सलीम
तारीख़ एक ख़ामोश ज़माना
असग़र नदीम सय्यद
अभी कुछ दिन लगेंगे
असग़र नदीम सय्यद
दीवार उन के घर की मिरी धूप ले गई
असग़र मेहदी होश
ना-गुज़ीर
असग़र मेहदी होश
जो इस ज़मीर फ़रोशी के माहेरीन में है
असग़र मेहदी होश
बस्ती मिली मकान मिले बाम-ओ-दर मिले
असग़र मेहदी होश
आए थे घर में आग लगाने शरीर लोग
असग़र मेहदी होश
बे-महाबा हो अगर हुस्न तो वो बात कहाँ
असग़र गोंडवी
बात बे-बात उलझते हो भला बात है क्या
असग़र आबिद
जो आप कहें उस में ये पहलू है वो पहलू
असर लखनवी
इक बात भला पूछें किस तरह मनाओगे
असर लखनवी
झपकी ज़रा जो आँख जवानी गुज़र गई
असर लखनवी
जाने क्यूँ लोग ग़म से डरते हैं
असर अकबराबादी
शराब बंद हो साक़ी के बस की बात नहीं
असद मुल्तानी
रहें न रिंद ये ज़ाहिद के बस की बात नहीं
असद मुल्तानी
इन अक़्ल के बंदों में आशुफ़्ता-सरी क्यूँ है
असद मुल्तानी
हम-साई
असद जाफ़री
शश्दर-ओ-हैरान है जो भी ख़रीदारों में है
असद जाफ़री
मोहब्बतें भी उसी आदमी का हिस्सा थीं
असअ'द बदायुनी
अज़ल के दिन जिन्हें देखा था बज़्म-ए-हुस्न-ए-पिन्हाँ में
आरज़ू सहारनपुरी
चटकी जो कली कोयल कूकी उल्फ़त की कहानी ख़त्म हुई
आरज़ू लखनवी
ये दास्तान-ए-दिल है क्या हो अदा ज़बाँ से
आरज़ू लखनवी
यही इक निबाह की शक्ल है वो जफ़ा करें मैं वफ़ा करूँ
आरज़ू लखनवी
वअ'दा सच्चा है कि झूटा मुझे मालूम न था
आरज़ू लखनवी
तुम्हें क्या काम नालों से तुम्हें क्या काम आहों से
आरज़ू लखनवी
हम आज खाएँगे इक तीर इम्तिहाँ के लिए
आरज़ू लखनवी
गोरे गोरे चाँद से मुँह पर काली काली आँखें हैं
आरज़ू लखनवी
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