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Collection: बात Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 87 - Darsaal

बात Poetry (page 87)

माना कि ज़िंदगी में है ज़िद का भी एक मक़ाम

अज़ीज़ हामिद मदनी

कुछ अब के हम भी कहें उस की दास्तान-ए-विसाल

अज़ीज़ हामिद मदनी

ख़ुदा का शुक्र है तू ने भी मान ली मिरी बात

अज़ीज़ हामिद मदनी

कह सकते तो अहवाल-ए-जहाँ तुम से ही कहते

अज़ीज़ हामिद मदनी

जो बात दिल में थी उस से नहीं कही हम ने

अज़ीज़ हामिद मदनी

हुस्न की शर्त-ए-वफ़ा जो ठहरी तेशा ओ संग-ए-गिराँ की बात

अज़ीज़ हामिद मदनी

अलग सियासत-ए-दरबाँ से दिल में है इक बात

अज़ीज़ हामिद मदनी

वही दाग़-ए-लाला की बात है कि ब-नाम-ए-हुस्न उधर गई

अज़ीज़ हामिद मदनी

सँभल न पाए तो तक़्सीर-ए-वाक़ई भी नहीं

अज़ीज़ हामिद मदनी

सलीब ओ दार के क़िस्से रक़म होते ही रहते हैं

अज़ीज़ हामिद मदनी

लिखी हुई जो तबाही है उस से क्या जाता

अज़ीज़ हामिद मदनी

करम का और है इम्काँ खुले तो बात चले

अज़ीज़ हामिद मदनी

जी-दारो! दोज़ख़ की हवा में किस की मोहब्बत जलती है

अज़ीज़ हामिद मदनी

जी है बहुत उदास तबीअत हज़ीं बहुत

अज़ीज़ हामिद मदनी

इस गुफ़्तुगू से यूँ तो कोई मुद्दआ नहीं

अज़ीज़ हामिद मदनी

एक-आध हरीफ़-ए-ग़म-ए-दुनिया भी नहीं था

अज़ीज़ हामिद मदनी

एक ही शहर में रहते बस्ते काले कोसों दूर रहा

अज़ीज़ हामिद मदनी

दिलों की उक़्दा-कुशाई का वक़्त है कि नहीं

अज़ीज़ हामिद मदनी

ऐ शहर-ए-ख़िरद की ताज़ा हवा वहशत का कोई इनआम चले

अज़ीज़ हामिद मदनी

कितनी मज़ाहिया है ये बोतल के जिन की बात

अज़ीज़ फ़ैसल

उस की हर बात समझ कर भी मैं अंजान रही

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

शिव तो नहीं हम फिर भी हम ने दुनिया भर के ज़हर पिए

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

मैं उस की धूप हूँ जो मेरा आफ़्ताब नहीं

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

हम ने सब को मुफ़्लिस पा के तोड़ दिया दिल का कश्कोल

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

ज़िंदगी के सारे मौसम आ के रुख़्सत हो गए

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

मैं उस की बात के लहजे का ए'तिबार करूँ

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

हम कोई नादान नहीं कि बच्चों की सी बात करें

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

ज़मीं की ख़ाक तो अफ़्लाक से ज़ियादा है

अज़ीम हैदर सय्यद

हलाकत-ए-दिल-ए-नाशाद राएगाँ भी नहीं

अज़हर सईद

शहर गुम-सुम रास्ते सुनसान घर ख़ामोश हैं

अज़हर नक़वी

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