बात Poetry (page 83)
अपनी बातों के ज़माने तो हवा-बुर्द हुए
बासिर सुल्तान काज़मी
क़रार पाते हैं आख़िर हम अपनी अपनी जगह
बासिर सुल्तान काज़मी
ख़त में क्या क्या लिखूँ याद आती है हर बात पे बात
बासिर सुल्तान काज़मी
दिल लगा लेते हैं अहल-ए-दिल वतन कोई भी हो
बासिर सुल्तान काज़मी
वो अपने मतलब की कह रहे हैं ज़बान पर गो है बात मेरी
बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
कहते हैं अर्ज़-ए-वस्ल पर वो कहो
बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
वो अपने मतलब की कह रहे हैं ज़बान पर गो है बात मेरी
बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
पूछते हैं वो इश्क़ का मतलब
बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
ख़ुद अपना ए'तिबार गँवाता रहा हूँ मैं
बशीर सैफ़ी
सब की मौजूदगी समझता है
बशीर महताब
पहचान अपनी हम ने मिटाई है इस तरह
बशीर बद्र
न उदास हो न मलाल कर किसी बात का न ख़याल कर
बशीर बद्र
न तुम होश में हो न हम होश में हैं
बशीर बद्र
न जी भर के देखा न कुछ बात की
बशीर बद्र
मुझ से क्या बात लिखानी है कि अब मेरे लिए
बशीर बद्र
ज़र्रों में कुनमुनाती हुई काएनात हूँ
बशीर बद्र
सुनसान रास्तों से सवारी न आएगी
बशीर बद्र
सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं
बशीर बद्र
न जी भर के देखा न कुछ बात की
बशीर बद्र
मेरे सीने पर वो सर रक्खे हुए सोता रहा
बशीर बद्र
कोई लश्कर कि धड़कते हुए ग़म आते हैं
बशीर बद्र
कहाँ आँसुओं की ये सौग़ात होगी
बशीर बद्र
है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है
बशीर बद्र
इक परी के साथ मौजों पर टहलता रात को
बशीर बद्र
दिल में इक तस्वीर छुपी थी आन बसी है आँखों में
बशीर बद्र
अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया
बशीर बद्र
जल्वों का उन के दिल को तलब-गार कर दिया
बशीरुद्दीन राज़
हुई मुद्दतें ऐ दिल-ए-हज़ीं न पयाम है न सलाम है
बशीरुद्दीन राज़
क़र्या क़र्या ख़ाक उड़ाई कूचा-गर्द फ़क़ीर हुए
बशीर अहमद बशीर
जुदा भी हो के वो इक पल कभी जुदा न हुआ
बशीर अहमद बशीर
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