बात Poetry (page 110)
वफ़ा के बाब में इल्ज़ाम-ए-आशिक़ी न लिया
अहमद फ़राज़
तुझ से मिल कर तो ये लगता है कि ऐ अजनबी दोस्त
अहमद फ़राज़
तिरा क़ुर्ब था कि फ़िराक़ था वही तेरी जल्वागरी रही
अहमद फ़राज़
तरस रहा हूँ मगर तू नज़र न आ मुझ को
अहमद फ़राज़
तड़प उठूँ भी तो ज़ालिम तिरी दुहाई न दूँ
अहमद फ़राज़
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं
अहमद फ़राज़
शगुफ़्त-ए-गुल की सदा में रंग-ए-चमन में आओ
अहमद फ़राज़
साक़िया एक नज़र जाम से पहले पहले
अहमद फ़राज़
सभी कहें मिरे ग़म-ख़्वार के अलावा भी
अहमद फ़राज़
नज़र बुझी तो करिश्मे भी रोज़-ओ-शब के गए
अहमद फ़राज़
न तेरा क़ुर्ब न बादा है क्या किया जाए
अहमद फ़राज़
न दिल से आह न लब से सदा निकलती है
अहमद फ़राज़
मंज़िलें एक सी आवारगीयाँ एक सी हैं
अहमद फ़राज़
कशीदा सर से तवक़्क़ो अबस झुकाव की थी
अहमद फ़राज़
करूँ न याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे
अहमद फ़राज़
जो क़ुर्बतों के नशे थे वो अब उतरने लगे
अहमद फ़राज़
जो ग़ैर थे वो इसी बात पर हमारे हुए
अहमद फ़राज़
हर एक बात न क्यूँ ज़हर सी हमारी लगे
अहमद फ़राज़
हर आश्ना में कहाँ ख़ू-ए-मेहरमाना वो
अहमद फ़राज़
फ़क़ीह-ए-शहर की मज्लिस से कुछ भला न हुआ
अहमद फ़राज़
चल निकलती हैं ग़म-ए-यार से बातें क्या क्या
अहमद फ़राज़
अब शौक़ से कि जाँ से गुज़र जाना चाहिए
अहमद फ़राज़
अब के तजदीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ
अहमद फ़राज़
शाख़-ए-अरमाँ की वही बे-सब्री आज भी है
अहमद अज़ीमाबादी
नज़्म
अहमद आज़ाद
हुई ग़ज़ल ही न कुछ बात बन सकी हम से
अहमद अता
ऐ मियाँ कौन ये कहता है मोहब्बत की है
अहमद अता
ये अलग बात कि तज्दीद-ए-तअल्लुक़ न हुआ
अहमद अशफ़ाक़
हम तिरे इश्क़ में कुछ ऐसे ठिकाने लग जाएँ
अहमद अशफ़ाक़
अगर कुछ ए'तिबार-ए-जिस्म-ओ-जाँ हो
आग़ाज़ बरनी
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