बात Poetry (page 105)
ख़ुदा अलीगढ़ की मदरसे को तमाम अमराज़ से शिफ़ा दे
अकबर इलाहाबादी
हूँ मैं परवाना मगर शम्अ तो हो रात तो हो
अकबर इलाहाबादी
दश्त-ए-ग़ुर्बत है अलालत भी है तन्हाई भी
अकबर इलाहाबादी
दर्द तो मौजूद है दिल में दवा हो या न हो
अकबर इलाहाबादी
अपनी गिरह से कुछ न मुझे आप दीजिए
अकबर इलाहाबादी
तेरा ख़याल जाँ के बराबर लगा मुझे
अकबर अली खान अर्शी जादह
बताओ तुम से कहाँ राब्ता किया जाए
अजमल सिराज
तेरे सिवा किसी की तमन्ना करूँगा मैं
अजमल सिराज
सुनी है चाप बहुत वक़्त के गुज़रने की
अजमल सिराज
नज़र आ रहे हैं जो तन्हा से हम
अजमल सिराज
दिल तो सादा है तेरी हर बात को सच्चा मानता है
अजमल सिद्दीक़ी
बोल पड़ता तो मिरी बात मिरी ही रहती
अजमल सिद्दीक़ी
ज़िंदगी रोज़ बनाती है बहाने क्या क्या
अजमल सिद्दीक़ी
खुल के बरसना और बरस कर फिर खुल जाना देखा है
अजमल सिद्दीक़ी
ख़त जो तेरे नाम लिखा, तकिए के नीचे रखता हूँ
अजमल सिद्दीक़ी
अलग अलग तासीरें इन की, अश्कों के जो धारे हैं
अजमल सिद्दीक़ी
रास्ते के पेच-ओ-ख़म क्या शय हैं सोचा ही नहीं
अजमल अजमली
ऐ हुस्न जब से राज़ तिरा पा गए हैं हम
अजमल अजमली
क्यूँ कहूँ कोई क़द-आवर नहीं आया अब तक
आजिज़ मातवी
जहाँ न दिल को सुकून है न है क़रार मुझे
आजिज़ मातवी
धुआँ सिफ़त हूँ ख़लाओं का है सफ़र मुझ को
अजीत सिंह हसरत
आख़िरी उम्मीद भी आँखों से छलकाए हुए
अजीत सिंह हसरत
यूँ ही हर बात पे हँसने का बहाना आए
अजय सहाब
जब भी मिलते हैं तो जीने की दुआ देते हैं
अजय सहाब
गुफ़्तुगू देर से जारी है नतीजे के बग़ैर
ऐतबार साजिद
बरसों ब'अद हमें देखा तो पहरों उस ने बात न की
ऐतबार साजिद
ज़ख़्मों का दो-शाला पहना धूप को सर पर तान लिया
ऐतबार साजिद
वो पहली जैसी वहशतें वो हाल ही नहीं रहा
ऐतबार साजिद
तुम्हें ख़याल-ए-ज़ात है शुऊर-ए-ज़ात ही नहीं
ऐतबार साजिद
कैसे कहीं कि जान से प्यारा नहीं रहा
ऐतबार साजिद
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