बात Poetry (page 104)
ज़िंदगी की तेज़ इतनी अब रवानी हो गई
अख़्तर अमान
तवील-तर है सफ़र मुख़्तसर नहीं होता
अख़्तर अमान
इधर चराग़ जल गए उधर चराग़ जल गए
अख़लाक़ बन्दवी
महबूबा और मौत
अख़लाक़ अहमद आहन
तिरी आश्नाई से तेरी रज़ा तक
अख़लाक़ अहमद आहन
लगा के आग बुझाने की बात करते हो
अख़लाक़ अहमद आहन
नदी का क्या है जिधर चाहे उस डगर जाए
अखिलेश तिवारी
गुत्थी न सुलझ पाई गो सुलझाई बहुत है
अखिलेश तिवारी
वो हज़ार हम पे जफ़ा सही कोई शिकवा फिर भी रवा नहीं
अख़गर मुशताक़ रहीमाबादी
ख़ुद नज़ारों पे नज़ारों को हँसी आती है
अख़गर मुशताक़ रहीमाबादी
हंगामा-ए-आफ़ात इधर भी है उधर भी
अख़गर मुशताक़ रहीमाबादी
बेदाद-ए-तग़ाफ़ुल से तो बढ़ता नहीं ग़म और
अख़गर मुशताक़ रहीमाबादी
बुरे भले में फ़र्क़ है ये जानते हैं सब मगर
अकबर हैदराबादी
ये कौन मेरी तिश्नगी बढ़ा बढ़ा के चल दिया
अकबर हैदराबादी
जिन पे अजल तारी थी उन को ज़िंदा करता है
अकबर हैदराबादी
अता हुई किसे सनद नज़र नज़र की बात है
अकबर हैदराबादी
तुम नाक चढ़ाते हो मिरी बात पे ऐ शैख़
अकबर इलाहाबादी
मेरे हवास इश्क़ में क्या कम हैं मुंतशिर
अकबर इलाहाबादी
इश्वा भी है शोख़ी भी तबस्सुम भी हया भी
अकबर इलाहाबादी
बी.ए भी पास हों मिले बी-बी भी दिल-पसंद
अकबर इलाहाबादी
मदरसा अलीगढ़
अकबर इलाहाबादी
ज़िद है उन्हें पूरा मिरा अरमाँ न करेंगे
अकबर इलाहाबादी
साँस लेते हुए भी डरता हूँ
अकबर इलाहाबादी
सदियों फ़िलासफ़ी की चुनाँ और चुनीं रही
अकबर इलाहाबादी
रंग-ए-शराब से मिरी निय्यत बदल गई
अकबर इलाहाबादी
न बहते अश्क तो तासीर में सिवा होते
अकबर इलाहाबादी
मेरे हवास-ए-इश्क़ में क्या कम हैं मुंतशिर
अकबर इलाहाबादी
मज़हब का हो क्यूँकर इल्म-ओ-अमल दिल ही नहीं भाई एक तरफ़
अकबर इलाहाबादी
मअ'नी को भुला देती है सूरत है तो ये है
अकबर इलाहाबादी
ख़ुशी क्या हो जो मेरी बात वो बुत मान जाता है
अकबर इलाहाबादी
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