अलम Poetry
नद्दी ये जैसे मौज में दरिया से जा मिले
जानाँ मलिक
सुकूत-ए-शब
अज़हर क़ादिरी
अब दिल है उन के हल्क़ा-ए-दाम-ए-जमाल में
ज़ोहरा नसीम
फ़रिश्ते इम्तिहान-ए-बंदगी में हम से कम निकले
ज़िया फ़तेहाबादी
तामील-ए-वफ़ा का अहद-नामा
ज़ेहरा निगाह
हिकायत-ए-गुरेज़ाँ
ज़ाहिदा ज़ैदी
तख़्ईल का दर खोले हुए शाम खड़ी है
ज़ाहिदा ज़ैदी
जैब ओ गरेबाँ टुकड़े टुकड़े दामन को भी तार किया
ज़फ़र अनवर
हालत-ए-बीमार-ए-ग़म पर जिस को हैरानी नहीं
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
सवाली
यूसुफ़ ज़फ़र
दर्द-ओ-ग़म रंज-ओ-अलम आह-ओ-फ़ुग़ाँ
योगेन्द्र बहल तिश्ना
ये हम ने माना कि होगा विसाल-ए-यार नसीब
याक़ूब अली आसी
ख़ुदा गवाह
यहया अमजद
हर इक मुफ़लिस के माथे पर अलम की दास्तानें हैं
वसी शाह
समुंदर में उतरता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
वसी शाह
मौत आई मुझे कूचे में तिरे जाने से
वसीम ख़ैराबादी
मुद्दआ' हासिल मिरा हो कर रहा
वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी
नायाब है सुकून दिल-ए-बे-क़रार में
वाजिद अली शाह अख़्तर
कभी लुत्फ़-ए-ज़बान-ए-ख़ुश-बयाँ थे
वाजिद अली शाह अख़्तर
दिखाते हैं जो ये सनम देखते हैं
वाजिद अली शाह अख़्तर
लुत्फ़-ए-निहाँ से जब जब वो मुस्कुरा दिए हैं
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ैर-मुमकिन है कि मिट जाए सनम की सूरत
वाहिद प्रेमी
तुम गए साथ उजालों का भी झूटा ठहरा
वहीद अख़्तर
सिसकती मज़लूमियत के नाम
तारिक़ क़मर
ख़िज़ाँ-नसीबों पे बैन करती हुई हवाएँ
तारिक़ क़मर
हवा रुकी है तो रक़्स-ए-शरर भी ख़त्म हुआ
तारिक़ क़मर
हुस्न-ए-शोख़-चश्म में नाम को वफ़ा नहीं
ताजवर नजीबाबादी
शर्मिंदा हम जुनूँ से हैं एक एक तार के
ताबिश देहलवी
धूमें मचाएँ सब्ज़ा रौंदें फूलों को पामाल करें
ताबिश देहलवी
नहीं कोई दोस्त अपना यार अपना मेहरबाँ अपना
ताबाँ अब्दुल हई
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