अजनबी Poetry (page 12)
आईना देखता हूँ
अख़्तर ज़ियाई
नन्हा क़ासिद
अख़्तर शीरानी
दुनिया भी पेश आई बहुत बे-रुख़ी के साथ
अख़तर इमाम रिज़वी
मैं उस का नाम घुले पानियों पे लिखता क्या
अख़्तर होशियारपुरी
तमाम आलम-ए-इम्काँ मिरे गुमान में है
अकबर हमीदी
हर इक शय पर बहार-ए-ज़िंदगी महसूस करता हूँ
ऐश बर्नी
न तीरगी के लिए हूँ न रौशनी के लिए
ऐन सलाम
गामज़न हैं हम मुसलसल अजनबी मंज़िल की सम्त
ऐन इरफ़ान
क़ल्ब की बंजर ज़मीं पर ख़्वाहिशें बोते हुए
ऐन इरफ़ान
पाताल ज़मीन आसमान
अहमद ज़फ़र
जब तक जुनूँ जुनूँ है ग़म-ए-आगही भी है
अहमद ज़फ़र
बस इक जहान-ए-तहय्युर से आने वाला है
अहमद शनास
उसे इक अजनबी खिड़की से झाँका
अहमद ख़याल
उन को में कर्बला के महीने में लाऊँगा
अहमद ख़याल
ये गर्म रेत ये सहरा निभा के चलना है
अहमद कमाल परवाज़ी
हुस्न नजात-दहिन्दा है
अहमद जावेद
अज़ल अबद से बहुत दूर झूमते थे हम
अहमद हमदानी
तुझ से मिल कर तो ये लगता है कि ऐ अजनबी दोस्त
अहमद फ़राज़
मयूरका
अहमद फ़राज़
तुझ से मिल कर तो ये लगता है कि ऐ अजनबी दोस्त
अहमद फ़राज़
चले थे यार बड़े ज़ोम में हवा की तरह
अहमद फ़राज़
चुप-चाप निकल आए थे सहरा की तरफ़ हम
अफ़ज़ल गौहर राव
हुआ है क़त्अ मिरा दस्त-ए-मोजज़ा तुझ पे
अफ़ज़ाल अहमद सय्यद
सभी हैं अपने मगर अजनबी से लगते हैं
आफ़ताब शम्सी
तलाश-ए-क़ाफ़िया में उम्र सब गुज़ारी है
आफ़ताब शम्सी
वो आसमाँ के दरख़शिंदा राहियोँ जैसा
आफ़ताब इक़बाल शमीम
हज़ीमतें जो फ़ना कर गईं ग़ुरूर मिरा
आफ़ताब इक़बाल शमीम
हिसार-ए-दीद में रोईदगी मालूम होती है
अफ़रोज़ आलम
फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था
अदीम हाशमी
ज़बाँ को हुक्म निगाह-ए-करम को पहचाने
अदा जाफ़री
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