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Collection: आयने Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 4 - Darsaal

आयने Poetry (page 4)

कभी आइने सा भी सोचना मुझे आ गया

इक़बाल कौसर

है तिरा गाल माल बोसे का

इंशा अल्लाह ख़ान

वुफ़ूर-ए-हुस्न की लज़्ज़त से टूट जाते हैं

इनाम कबीर

लोग पाबंद-ए-सलासिल हैं मगर ख़ामोश हैं

इमरान शनावर

परिंदा आइने से क्या लड़ेगा

इमरान आमी

ने आदमी पसंद न इस को ख़ुदा पसंद

इम्दाद आकाश

हमारा आइना बे-कार हो गया तो फिर!

इलियास बाबर आवान

ज़रा सी देर को आए थे ख़्वाब आँखों में

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मिरी मोहब्बत की बे-ख़ुदी को तलाश-ए-हक़्क़-ए-जलाल देना

इफ़्फ़त अब्बास

वो शहर इत्तिफ़ाक़ से नहीं मिला

इदरीस बाबर

क़यामतें गुज़र गईं रिवायतों की सोच में

हुमैरा रहमान

अभी वो ख़ुद को ही देखे जाता है आइने में

हसन जमील

कभी जो आँखों के आ गया आफ़्ताब आगे

हसन अब्बासी

इंक़लाब-ए-सुब्ह की कुछ कम नहीं ये भी दलील

हनीफ़ साजिद

जल्वा-गर सोचों में हैं कुछ आगही के आफ़्ताब

हनीफ़ साजिद

अजब है आलम अजब है मंज़र कि सकता में है ये चश्म-ए-हैरत

हनीफ़ अख़गर

अपने हिसार-ए-जिस्म से बाहर भी देखते

हामिद जीलानी

है इज़्तिराब हर इक रंग को बिखरने का

हकीम मंज़ूर

अपनी नज़र से टूट कर अपनी नज़र में गुम हुआ

हकीम मंज़ूर

मेरी शाएरी

हफ़ीज़ जालंधरी

'इक़बाल' के मज़ार पर

हफ़ीज़ जालंधरी

कोई मुँह फेर लेता है तो 'क़ासिर' अब शिकायत क्या

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

मोहब्बत की गवाही अपने होने की ख़बर ले जा

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

बन से फ़सील-ए-शहर तक कोई सवार भी नहीं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

ये सच है मेरी सदा ने रौशन किए हैं मेहराब पर सितारे

ग़ुलाम हुसैन साजिद

ये आब-ओ-ताब इसी मरहले पे ख़त्म नहीं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

सितारा-ए-ख़्वाब से भी बढ़ कर ये कौन बे-मेहर है कि जिस ने

ग़ुलाम हुसैन साजिद

उफ़ुक़ से आग उतर आई है मिरे घर भी

ग़ुलाम हुसैन साजिद

नशात-ए-फ़त्ह से तो दामन-ए-दिल भर नहीं पाए

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मिरी सुब्ह-ए-ख़्वाब के शहर पर यही इक जवाज़ है जब्र का

ग़ुलाम हुसैन साजिद

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