आंसू Poetry (page 25)
होना ही क्या ज़रूर थे ये दो-जहाँ हैं क्यूँ
बहज़ाद लखनवी
इक बे-वफ़ा को प्यार किया हाए क्या किया
बहज़ाद लखनवी
इश्क़ के आसार हैं फिर ग़श मुझे आया देखो
बेदम शाह वारसी
ख़त में क्या क्या लिखूँ याद आती है हर बात पे बात
बासिर सुल्तान काज़मी
चराग़ उस ने बुझा भी दिया जला भी दिया
बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
सब की मौजूदगी समझता है
बशीर महताब
उस ने छू कर मुझे पत्थर से फिर इंसान किया
बशीर बद्र
उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं
बशीर बद्र
शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ
बशीर बद्र
मैं जिस की आँख का आँसू था उस ने क़द्र न की
बशीर बद्र
ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएँगे
बशीर बद्र
बिछी थीं हर तरफ़ आँखें ही आँखें
बशीर बद्र
उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं
बशीर बद्र
शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ
बशीर बद्र
रेत भरी है इन आँखों में आँसू से तुम धो लेना
बशीर बद्र
पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है
बशीर बद्र
पहला सा वो ज़ोर नहीं है मेरे दुख की सदाओं में
बशीर बद्र
मेरी आँखों में तिरे प्यार का आँसू आए
बशीर बद्र
मैं तुम को भूल भी सकता हूँ इस जहाँ के लिए
बशीर बद्र
मैं कब तन्हा हुआ था याद होगा
बशीर बद्र
कौन आया रास्ते आईना-ख़ाने हो गए
बशीर बद्र
जब तक निगार-ए-दाश्त का सीना दुखा न था
बशीर बद्र
ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएँगे
बशीर बद्र
अगर यक़ीं नहीं आता तो आज़माए मुझे
बशीर बद्र
मुझे जीना नहीं आता
बशर नवाज़
वो नज़र आईना-फ़ितरत ही सही
बाक़ी सिद्दीक़ी
तू नहीं तो तेरा दर्द-ए-जाँ-फ़ज़ा मिल जाएगा
बाक़ी अहमदपुरी
सैर में तेरी है बुलबुल बोस्ताँ बे-कार है
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
रखता है यूँ वो ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम दोश पर
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
छुप के नज़रों से इन आँखों की फ़रामोश की राह
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
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