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Collection: आंखें Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 34 - Darsaal

आंखें Poetry (page 34)

रात से दिन का वो जो रिश्ता थी

दिनेश नायडू

ख़ुद अपनी आग में सारे चराग़ जलते हैं

दिलावर अली आज़र

आसमाँ खोल दिया पैरों में राहें रख दीं

धीरेंद्र सिंह फ़य्याज़

तुम्हारी आँखें

दर्शिका वसानी

काश

दर्शिका वसानी

कब ख़मोशी को मोहब्बत की ज़बाँ समझा था मैं

दर्शन सिंह

खुल नहीं सकती हैं अब आँखें मेरी

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

खुल नहीं सकती हैं अब आँखें मिरी

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

तेरी गली में मैं न चलूँ और सबा चले

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

आख़िर जिस्म भी दीवारों को सौंप गए

दानियाल तरीर

आवाज़ का नौहा

दानियाल तरीर

खंडर ये फिर बसाने का इरादा ही नहीं था

दानियाल तरीर

ख़ामोशी की क़िर्अत करने वाले लोग

दानियाल तरीर

अजब रंग-ए-तिलस्म-ओ-तर्ज़-ए-नौ है

दानियाल तरीर

शब-ए-वस्ल भी लब पे आए गए हैं

दाग़ देहलवी

इन आँखों ने क्या क्या तमाशा न देखा

दाग़ देहलवी

हुआ जब सामना उस ख़ूब-रू से

दाग़ देहलवी

फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं

दाग़ देहलवी

दुश्मन जवानियों की ये आश्नाइयाँ हैं

चराग़ हसन हसरत

सर उठा के मत चलिए आज के ज़माने में

चरण सिंह बशर

ज़िंदगी की यही कहानी है

चाँदनी पांडे

जहाँ रंग-ओ-बू है और मैं हूँ

चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी

हल्की हल्की बूँदें बरसीं पंछी करें कलोल

चमन लाल चमन

रामायण का एक सीन

चकबस्त ब्रिज नारायण

नए झगड़े निराली काविशें ईजाद करते हैं

चकबस्त ब्रिज नारायण

ये शहर-ए-ना-रसाई है

बुशरा एजाज़

उन्हें ढूँडो

बुशरा एजाज़

हैराँ हूँ कि अब लाऊँ कहाँ से मैं ज़बाँ और

बिस्मिल साबरी

अब के बसंत आई तो आँखें उजड़ गईं

बिमल कृष्ण अश्क

वो: एक

बिमल कृष्ण अश्क

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