विद्वान Poetry (page 46)
कैफ़ियत क्या थी यहाँ आलम-ए-ग़म से पहले
अख़्तर अंसारी अकबराबादी
लुत्फ़ ले ले के पिए हैं क़दह-ए-ग़म क्या क्या
अख़्तर अंसारी
फ़ौजियों के सर तो दुश्मन के सिपाही ले गए
अख़लाक़ बन्दवी
मैं किसी और ही आलम का मकीं हूँ प्यारे
अकबर मासूम
ख़ुद से निकलूँ भी तो रस्ता नहीं आसान मिरा
अकबर मासूम
कुल आलम-ए-वुजूद कि इक दश्त-ए-नूर था
अकबर हैदराबादी
बस इक तसलसुल-ए-तकरार-ए-क़ुर्ब-ओ-दूरी था
अकबर हैदराबादी
तमाम आलम-ए-इम्काँ मिरे गुमान में है
अकबर हमीदी
इक लम्हे ने जीवन-धारा रोक लिया
अकबर हमीदी
जल्वा-ए-दरबार-ए-देहली
अकबर इलाहाबादी
यूँ मिरी तब्अ से होते हैं मआनी पैदा
अकबर इलाहाबादी
जल्वा अयाँ है क़ुदरत-ए-परवरदिगार का
अकबर इलाहाबादी
फ़लसफ़ी को बहस के अंदर ख़ुदा मिलता नहीं
अकबर इलाहाबादी
अपने पहलू से वो ग़ैरों को उठा ही न सके
अकबर इलाहाबादी
आज यूँ मुझ से मिला है कि ख़फ़ा हो जैसे
अकबर अली खान अर्शी जादह
गुज़र गई है अभी साअत-ए-गुज़िश्ता भी
अजमल सिराज
तर्क-ए-तअल्लुक़ कर तो चुके हैं इक इम्कान अभी बाक़ी है
ऐतबार साजिद
मुझ से मुख़्लिस था न वाक़िफ़ मिरे जज़्बात से था
ऐतबार साजिद
आँखों से अयाँ ज़ख़्म की गहराई तो अब है
ऐतबार साजिद
शोर अब आलम में है उस शोबदा-पर्दाज़ का
ऐश देहलवी
जुरअत ऐ दिल मय ओ मीना है वो ख़ुद-काम भी है
ऐश देहलवी
रोज़ इक मर्ग का आलम भी गुज़रता है यहाँ
ऐन ताबिश
पहले तो शहर ऐसा न था
ऐन ताबिश
बज़्म ख़ाली नहीं मेहमान निकल आते हैं
ऐन ताबिश
जिधर से वादी-ए-हैरत में हम गुज़रते हैं
अहसन रिज़वी दानापुरी
इश्क़ रुस्वा-कुन-ए-आलम वो है 'अहसन' जिस से
अहसन मारहरवी
कशिश-ए-हुस्न की ये अंजुमन-आराई है
अहसन मारहरवी
जब तक अपने दिल में उन का ग़म रहा
अहसन मारहरवी
इल्म की ज़रूरत
अहमक़ फफूँदवी
फ़सान-ए-इबरत
अहमक़ फफूँदवी
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