विद्वान Poetry (page 41)
मैं आलम-ए-इम्काँ में जिसे ढूँढ रहा हूँ
अर्श सिद्दीक़ी
मेरे प्यारे वतन
अर्श मलसियानी
मैं क्यूँ भूल जाऊँ
अर्श मलसियानी
दीवाली
अर्श मलसियानी
जाने किस आलम-ए-एहसास में खोए हुए हैं
अरमान नज्मी
देख लो गे ख़ुद!
आरिफ़ा शहज़ाद
उम्र-भर का हुआ ज़ियाँ जानाँ
आरिफ़ इशतियाक़
उस गली से मिरे गुज़रने तक
आरिफ़ इमाम
तितलियाँ रंगों का महशर हैं कभी सोचा न था
आरिफ़ अब्दुल मतीन
मेरी सोच लरज़ उट्ठी है देख के प्यार का ये आलम
आरिफ़ अब्दुल मतीन
जो उभरे वक़्त के साँचे में ढल के
आरिफ़ अब्दुल मतीन
मुझे महरूमियों का ग़म नहीं है
आरिफ़ अब्बास
यूँ देखने में तो ऊपर से सख़्त हूँ शायद
अक़ील शादाब
हवस-परस्ती ओ ग़ारत-गरी की लत न गई
अक़ील शादाब
हुस्न हर रंग में मख़्सूस कशिश रखता है
अनवापुल हसन अनवार
वो पर्दे से निकल कर सामने जब बे-हिजाब आया
अनवर सहारनपुरी
क्यूँ ख़फ़ा हम से हो ख़ता क्या है
अनवर सहारनपुरी
हर सम्त समुंदर है हर सम्त रवाँ पानी
अनवर सदीद
मुद्दतों से कोई पैग़ाम नहीं आता है
अनवर साबरी
इश्क़ मुकम्मल ख़्वाब-ए-परेशाँ
अनवर साबरी
अजीब लुत्फ़ था नादानियों के आलम में
अनवर मसूद
इशारतों की वो शर्हें वो तज्ज़िया भी गया
अनवर मसूद
नज़र आए क्या मुझ से फ़ानी की सूरत
अनवर देहलवी
हो रहा है टुकड़े टुकड़े दिल मेरे ग़म-ख़्वार का
अनवर देहलवी
आँखें दिखाईं ग़ैर को मेरी ख़ता के साथ
अनवर देहलवी
हमारे इश्क़ और उन के तग़ाफ़ुल का ये आलम है
अनवर बरेलवी
ये सरकारी शिफ़ा-ख़ाने में जो बीमार लेटे हैं
अनवर बरेलवी
हयात-ए-राएगाँ है और मैं हूँ
अंजुम सिद्दीक़ी
नहीं नाम-ओ-निशाँ साए का लेकिन यार बैठे हैं
अंजुम रूमानी
हर चंद उन्हें अहद फ़रामोश न होगा
अंजुम रूमानी
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