विद्वान Poetry (page 38)
दिल हमारा है कि हम माइल-ए-फ़रियाद नहीं
अज़ीज़ लखनवी
देख कर हर दर-ओ-दीवार को हैराँ होना
अज़ीज़ लखनवी
बेकार ये ग़ुस्सा है क्यूँ उस की तरफ़ देखो
अज़ीज़ लखनवी
ज़ालिम तिरे वादों ने दीवाना बना रक्खा
अज़ीज़ हैदराबादी
सदियों में जा के बनता है आख़िर मिज़ाज-ए-दहर
अज़ीज़ हामिद मदनी
ज़ंजीर-ए-पा से आहन-ए-शमशीर है तलब
अज़ीज़ हामिद मदनी
तल्ख़-तर और ज़रा बादा-ए-साफ़ी साक़ी
अज़ीज़ हामिद मदनी
सूरत-ए-ज़ंजीर मौज-ए-ख़ूँ में इक आहंग है
अज़ीज़ हामिद मदनी
न फ़ासले कोई निकले न क़ुर्बतें निकलीं
अज़ीज़ हामिद मदनी
जूयान-ए-ताज़ा-कारी-ए-गुफ़्तार कुछ कहो
अज़ीज़ हामिद मदनी
इक ख़्वाब-ए-आतिशीं का वो महरम सा रह गया
अज़ीज़ हामिद मदनी
बिछड़ के भीड़ में ख़ुद से हवासों का वो आलम था
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ज़रा मुश्किल से समझेंगे हमारे तर्जुमाँ हम को
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
शहर को आतिश-ए-रंजिश के धुआँ तक देखूँ
अज़हर हाश्मी
सुरूर-ए-इश्क़ की मस्ती कहाँ है सब के लिए
अज़ीम कुरेशी
बीच दिलों में उतरा तो है
अज़ीम कुरेशी
रौशनी फैली तो सब का रंग काला हो गया
आज़ाद गुलाटी
ख़ुद हमीं को राहतों के कैफ़ का चसका न था
आज़ाद गुलाटी
नाव तूफ़ान में जब ज़ेर-ओ-ज़बर होती है
औलाद अली रिज़वी
चार-सू आलम-ए-इम्काँ में अँधेरा देखा
औज लखनवी
दुनिया से हुए बैठे हो रू-पोश ऐ जाना
आतिफ़ ख़ान
वतन-आशोब
असरार-उल-हक़ मजाज़
सरमाया-दारी
असरार-उल-हक़ मजाज़
रात और रेल
असरार-उल-हक़ मजाज़
नूरा
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्र-ए-दिल
असरार-उल-हक़ मजाज़
ख़िराज-अक़ीदत
असरार-उल-हक़ मजाज़
इशरत-ए-तन्हाई
असरार-उल-हक़ मजाज़
आज
असरार-उल-हक़ मजाज़
आहंग-ए-नौ
असरार-उल-हक़ मजाज़
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