विद्वान Poetry (page 32)
शहर-दर-शहर दीदा-वर भटके
फ़रहत अब्बास
खो बैठी है सारे ख़द-ओ-ख़ाल अपनी ये दुनिया
फ़रहान सालिम
तक़ाज़ा
फ़रीद इशरती
मेरी हवस को ऐश-ए-दो-आलम भी था क़ुबूल
फ़ानी बदायुनी
एक आलम को देखता हूँ मैं
फ़ानी बदायुनी
ज़बाँ मुद्दआ-आश्ना चाहता हूँ
फ़ानी बदायुनी
यूँ नज़्म-ए-जहाँ दरहम-ओ-बरहम न हुआ था
फ़ानी बदायुनी
वाहिमे की ये मश्क़-ए-पैहम क्या
फ़ानी बदायुनी
वा-ए-नादानी ये हसरत थी कि होता दर खुला
फ़ानी बदायुनी
नाम बदनाम है नाहक़ शब-ए-तन्हाई का
फ़ानी बदायुनी
मिज़ाज-ए-दहर में उन का इशारा पाए जा
फ़ानी बदायुनी
ख़ल्क़ कहती है जिसे दिल तिरे दीवाने का
फ़ानी बदायुनी
जुस्तुजू-ए-नशात-ए-मुबहम क्या
फ़ानी बदायुनी
जीने की है उम्मीद न मरने का यक़ीं है
फ़ानी बदायुनी
हर तबस्सुम को चमन में गिर्या-सामाँ देख कर
फ़ानी बदायुनी
बे-ख़ुदी पे था 'फ़ानी' कुछ न इख़्तियार अपना
फ़ानी बदायुनी
मौजों के इत्तिहाद का आलम न पूछिए
फ़ना निज़ामी कानपुरी
इक तिश्ना-लब ने बढ़ के जो साग़र उठा लिया
फ़ना निज़ामी कानपुरी
वो आश्ना-ए-मंज़िल-ए-इरफ़ाँ हुआ नहीं
फ़ना बुलंदशहरी
उन के जल्वों पे हमा-वक़्त नज़र होती है
फ़ना बुलंदशहरी
तेरी नज़रों पे तसद्दुक़ आज अहल-ए-होश हैं
फ़ना बुलंदशहरी
जल्वा जो तिरे रुख़ का एहसास में ढल जाए
फ़ना बुलंदशहरी
अँधेरे लाख छा जाएँ उजाला कम नहीं होता
फ़ना बुलंदशहरी
ऐ सनम देर न कर अंजुमन-आरा हो जा
फ़ना बुलंदशहरी
बहादुरी जो नहीं है तो बुज़दिली भी नहीं
फख्र ज़मान
कुछ ज़िंदगी में लुत्फ़ का सामाँ नहीं रहा
फ़ैज़ी निज़ाम पुरी
गुलों के चेहरा-ए-रंगीं पे वो निखार नहीं
फ़ैज़ी निज़ाम पुरी
मामूली बे-कार समझने वाले मुझ से दूर रहें
फ़ैज़ आलम बाबर
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ऐ दिल-ए-बेताब ठहर
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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