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Collection: विद्वान Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 31 - Darsaal

विद्वान Poetry (page 31)

तेज़ एहसास-ए-ख़ुदी दरकार है

फ़िराक़ गोरखपुरी

सुना तो है कि कभी बे-नियाज़-ए-ग़म थी हयात

फ़िराक़ गोरखपुरी

कमी न की तिरे वहशी ने ख़ाक उड़ाने में

फ़िराक़ गोरखपुरी

जिन की ज़िंदगी दामन तक है बेचारे फ़रज़ाने हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी

हो के सर-ता-ब-क़दम आलम-ए-असरार चला

फ़िराक़ गोरखपुरी

ग़म तिरा जल्वा-गह-ए-कौन-ओ-मकाँ है कि जो था

फ़िराक़ गोरखपुरी

इक रोज़ हुए थे कुछ इशारात ख़फ़ी से

फ़िराक़ गोरखपुरी

दीदार में इक-तरफ़ा दीदार नज़र आया

फ़िराक़ गोरखपुरी

दौर-ए-आग़ाज़-ए-जफ़ा दिल का सहारा निकला

फ़िराक़ गोरखपुरी

बस्तियाँ ढूँढ रही हैं उन्हें वीरानों में

फ़िराक़ गोरखपुरी

अपने ग़म का मुझे कहाँ ग़म है

फ़िराक़ गोरखपुरी

अब अक्सर चुप चुप से रहें हैं यूँही कभू लब खोलें हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी

आज भी क़ाफ़िला-ए-इश्क़ रवाँ है कि जो था

फ़िराक़ गोरखपुरी

का'बे में हो या बुत-ख़ाने में होने को तो सर ख़म होता है

फ़िगार उन्नावी

ग़म-ए-जानाँ से रंगीं और कोई ग़म नहीं होता

फ़िगार उन्नावी

हमारे उन के तअल्लुक़ का अब ये आलम है

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

ग़मों से खेलते रहना कोई हँसी भी नहीं

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

दरख़्तों के लिए

फ़ाज़िल जमीली

ख़ुमार-ए-शब में तिरा नाम लब पे आया क्यूँ

फ़ाज़िल जमीली

खुला न मुझ से तबीअत का था बहुत गहरा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

जुरअत-ए-इज़हार से रोकेगी क्या

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

राह में उस की चलें और इम्तिहाँ कोई न हो

फ़य्याज़ फ़ारुक़ी

जो तू नहीं है तो लगता है अब कि तू क्या है

फ़सीह अकमल

अजीब रंग सा चेहरों पे बे-कसी का है

फ़ारूक़ नाज़की

न दौलत की तलब थी और न दौलत चाहिए है

फ़रहत नदीम हुमायूँ

मेरा दिल-ए-नाशाद जो नाशाद रहेगा

फ़रहत कानपुरी

आँखों में बसे हो तुम आँखों में अयाँ हो कर

फ़रहत कानपुरी

लगे हुए हैं ज़माने के इंतिज़ाम में हम

फ़रहत एहसास

काम उन आँखों की हवसनाकी की साज़िश आ गई

फ़रहत एहसास

घर बनाने में तमाम अहल-ए-सफ़र लग गए हैं

फ़रहत एहसास

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