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Collection: विद्वान Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 30 - Darsaal

विद्वान Poetry (page 30)

जुज़ क़ैस और कोई न आया ब-रू-ए-कार

ग़ालिब

जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी

ग़ालिब

हम से खुल जाओ ब-वक़्त-ए-मय-परस्ती एक दिन

ग़ालिब

हुजूम-ए-नाला हैरत आजिज़-ए-अर्ज़-ए-यक-अफ़्ग़ँ है

ग़ालिब

हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़

ग़ालिब

है वस्ल हिज्र आलम-ए-तमकीन-ओ-ज़ब्त में

ग़ालिब

ग़म नहीं होता है आज़ादों को बेश अज़-यक-नफ़स

ग़ालिब

गर्म-ए-फ़रियाद रखा शक्ल-ए-निहाली ने मुझे

ग़ालिब

एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब

ग़ालिब

चाक की ख़्वाहिश अगर वहशत ब-उर्यानी करे

ग़ालिब

बज़्म-ए-शाहंशाह में अशआर का दफ़्तर खुला

ग़ालिब

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे

ग़ालिब

बाग़ पा कर ख़फ़क़ानी ये डराता है मुझे

ग़ालिब

इंतिज़ार-ए-दीद में यूँ आँख पथराई कि बस

ग़व्वास क़ुरैशी

आइए ऐ जान-ए-आलम आइए

गौहर बेगम गौहर

दोस्ती अपनी जगह और दुश्मनी अपनी जगह

गणेश बिहारी तर्ज़

दोस्ती अपनी जगह और दुश्मनी अपनी जगह

गणेश बिहारी तर्ज़

रुख़ हवाओं के किसी सम्त हों मंज़र हैं वही

फ़ुज़ैल जाफ़री

ज़ौक़-ए-नज़र को जल्वा-ए-बेताब ले गया

फ़ितरत अंसारी

उन का मंशा है न फैले ख़स-ओ-ख़ाशाक में आग

फ़ितरत अंसारी

नए जहाँ में पुरानी शराब ले आए

फ़ितरत अंसारी

तुम को आना है तो आ जाओ इसी आलम में

फ़िरदौस गयावी

उसी की शरह है ये उठते दर्द का आलम

फ़िराक़ गोरखपुरी

सर-ज़मीन-ए-हिंद पर अक़्वाम-ए-आलम के 'फ़िराक़'

फ़िराक़ गोरखपुरी

जुगनू

फ़िराक़ गोरखपुरी

आधी रात

फ़िराक़ गोरखपुरी

ज़िंदगी दर्द की कहानी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

ज़ेर-ओ-बम से साज़-ए-ख़िलक़त के जहाँ बनता गया

फ़िराक़ गोरखपुरी

ये नर्म नर्म हवा झिलमिला रहे हैं चराग़

फ़िराक़ गोरखपुरी

तूर था का'बा था दिल था जल्वा-ज़ार-ए-यार था

फ़िराक़ गोरखपुरी

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