दर्पण Poetry (page 12)
ज़िंदगी एहसान ही से मावरा थी मैं न था
रऊफ़ ख़ैर
कितनी ठंडी थी हवा क़र्या-ए-बर्फ़ानी की
रासिख़ इरफ़ानी
रात आख़िर हो सितम-पेशों पे ऐसा भी नहीं
राशिद तराज़
मिली है कैसे गुनाहों की ये सज़ा मुझ को
राशिद तराज़
तुम अपनी आँखों को बंद कर लो
राशिद आज़र
समझ रहा है तिरी हर ख़ता का हामी मुझे
राशिद आज़र
सर-ता-पा हैरत में गुम हो जाएगा
राशिदा माहीन मलिक
सर-ब-सर शाख़-ए-दिल हरी रहेगी
राशिदा माहीन मलिक
आँख इम्कान से भरी हुई थी
राशिदा माहीन मलिक
बात सूरज की कोई आज बनी है कि नहीं
रशीद क़ैसरानी
जुनूँ की फ़स्ल आई बढ़ गई तौक़ीर पत्थर की
रशीद लखनवी
जो मुझे मर्ग़ूब हो वो सोगवारी चाहिए
रशीद लखनवी
तिरे नज़दीक आ कर सोचता हूँ
रसा चुग़ताई
अपनी बे-चेहरगी में पत्थर था
रसा चुग़ताई
यक़ीनन है कोई माह-ए-मुनव्वर पीछे चिलमन के
रंजूर अज़ीमाबादी
ये ज़िंदगी सज़ा के सिवा और कुछ नहीं
रम्ज़ अज़ीमाबादी
जलने का हुनर सिर्फ़ फ़तीले के लिए था
रम्ज़ अज़ीमाबादी
तेरी महफ़िल में सितारे कोई जुगनू लाया
राम रियाज़
मेरे तसव्वुरात में अब कोई दूसरा नहीं
राम कृष्ण मुज़्तर
पहले ये जिस्म जलाया जाए
रजनीश सचन
दिलों में ख़ाक सी उड़ती है क्या न जाने क्या
राजेन्द्र मनचंदा बानी
बड़ी तस्वीर लटका दी है अपनी
राजेश रेड्डी
ये कब चाहा कि मैं मशहूर हो जाऊँ
राजेश रेड्डी
सुना है ये जहाँ अच्छा था पहले
राजेश रेड्डी
सफ़र में अब के अजब तजरबा निकल आया
राजेश रेड्डी
इजाज़त कम थी जीने की मगर मोहलत ज़ियादा थी
राजेश रेड्डी
हर एक साँस में कुछ दर्द दर्द लगता है
राज खेती
बस इक ख़ता की मुसलसल सज़ा अभी तक है
रईस सिद्दीक़ी
हर इक मंज़र बदलता जा रहा है
रईस सिद्दीक़ी
बस इक ख़ता की मुसलसल सज़ा अभी तक है
रईस सिद्दीक़ी
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