आग Poetry (page 26)
तू आग में ऐ औरत ज़िंदा भी जली बरसों
हबीब जालिब
ख़ुदा हमारा है
हबीब जालिब
औरत
हबीब जालिब
कुछ लोग ख़यालों से चले जाएँ तो सोएँ
हबीब जालिब
मुझ को दिमाग़-ए-शेवन-ओ-आह-ओ-फ़ुग़ाँ नहीं
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
आँखों के पोछने से लगा आग का पता
गुलज़ार
सिद्धार्थ की एक रात
गुलज़ार
आँखों में जल रहा है प बुझता नहीं धुआँ
गुलज़ार
बम धमाका
गुलनाज़ कौसर
इश्क़ ने सामने होते ही जलाया दिल को
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
शहर-ए-जाँ की फ़सीलों से बाहर
गुलाम जीलानी असग़र
तूफ़ान समुंदर के न दरिया के भँवर देख
गुहर खैराबादी
राह-ए-उल्फ़त में मक़ामात पुराने आए
गोविन्द गुलशन
फिर मुझे जीने की दुआ दी है
गोर बचन सिंह दयाल मग़मूम
नज़्म
गोपाल मित्तल
अब उसी आग में जलते हैं जिसे
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
एक ज़ाती नज़्म
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
याद अश्कों में बहा दी हम ने
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ऐ ख़ार ख़ार-ए-हसरत क्या क्या फ़िगार हैं हम
ग़ुलाम मौला क़लक़
मिरी विरासत में जो भी कुछ है वो सब इसी दहर के लिए है
ग़ुलाम हुसैन साजिद
उफ़ुक़ से आग उतर आई है मिरे घर भी
ग़ुलाम हुसैन साजिद
मिरी विरासत में जो भी कुछ है वो सब इसी दहर के लिए है
ग़ुलाम हुसैन साजिद
लहू की आग अगर जलती रहेगी
ग़ुलाम हुसैन साजिद
किस ने दी आवाज़ ''सिपर की ओट में था''
ग़ुलाम हुसैन साजिद
अगर ये रंगीनी-ए-जहाँ का वजूद है अक्स-ए-आसमाँ से
ग़ुलाम हुसैन साजिद
कभी सूरत जो मुझे आ के दिखा जाते हो
ग़ुलाम भीक नैरंग
अजीब बात हमारा ही ख़ूँ हुआ पानी
ग़ज़नफ़र
पत्थर
ग़ज़नफ़र
सामान-ए-ऐश सारा हमें यूँ तू दे गया
ग़ज़नफ़र
सजा के ज़ेहन में कितने ही ख़्वाब सोए थे
ग़ज़नफ़र
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