वो दिल कहाँ है अहल-ए-नज़र दिल कहें जिसे
वो दिल कहाँ है अहल-ए-नज़र दिल कहें जिसे
या'नी नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल कहें जिसे
ज़ंजीर-ए-ग़म है ख़ुद मिरी ख़्वाहिश का सिलसिला
या ज़ुल्फ़-ए-ख़म-ब-ख़म कि सलासिल कहें जिसे
मिलता है मुश्किलों से किसी के हुज़ूर का
वो एक लहज़ा ज़ीस्त का हासिल कहें जिसे
कश्ती शिकस्तगान-ए-यम-ए-इज़्तिराब को
तेरा ही एक नाम है साहिल कहें जिसे
पाती नहीं फ़रोग़ ब-जुज़ सोज़-ओ-साज़-ए-इश्क़
शम-ए-हयात दर-ख़ुर-ए-महफ़िल कहें जिसे
इस दिल को शाद रखने की ख़िदमत मिली मुझे
ग़म-हा-ए-रोज़गार की मंज़िल कहें जिसे
इस दौर-ए-कद्र-दान-ए-सुख़न में ये इत्तिफ़ाक़
शाइर वही है रौनक़-ए-महफ़िल कहें जिसे
'महरूम' चाक-ए-सीना-ए-हर-गुल में है वो चीज़
तासीर-ए-नाला-हा-ए-अनादिल कहें जिसे
(695) Peoples Rate This