वो आई शाम-ए-ग़म वक़्फ़-ए-बला होने का वक़्त आया
वो आई शाम-ए-ग़म वक़्फ़-ए-बला होने का वक़्त आया
तड़पने लोटने का दम फ़ना होने का वक़्त आया
उन्हें अपनी जफ़ाओं पर पशेमानी हुई आख़िर
शरीक-ए-मातम-ए-अहल-ए-वफ़ा होने का वक़्त आया
उदासी हर सहर कहती है मुझ से बज़्म-ए-अंजुम की
उठ ऐ ग़म-दीदा उठ महव-ए-बुका होने का वक़्त आया
तिरा मिलना किसे मिलता है मम्नून-ए-मुक़द्दर हूँ
मगर अफ़्सोस मिलते ही जुदा होने का वक़्त आया
बहार आई हर इक ज़र्रे से फूटी हुस्न की दुनिया
फ़रेब-ए-मा-सिवा के हक़-नुमा होने का वक़्त आया
क़यामत-ख़ेज़ है हुस्न-ए-चमन ऐ बुलबुल-ए-नालाँ
तिरे नालों से फिर महशर बपा होने का वक़्त आया
मिरी टूटी हुई कश्ती थपेड़े मौज-ए-तूफ़ाँ के
ख़ुदा-ए-पाक तेरे नाख़ुदा होने का वक़्त आया
जवानी जा चुकी 'महरूम' ज़ौक़-ए-आरज़ू कैसा
तुम्हारे बे-नियाज़-ए-मुद्दआ होने का वक़्त आया
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