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वही अरमान जैसे जी जो मुश्किल से निकलते हैं - तिलोकचंद महरूम कविता - Darsaal

वही अरमान जैसे जी जो मुश्किल से निकलते हैं

वही अरमान जैसे जी जो मुश्किल से निकलते हैं

ब-शक्ल-ए-अश्क-ओ-फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ाँ दिल से निकलते हैं

किसी में हौसला होता है तूफ़ानों से लड़ने का

सफ़ीने यूँ तो सब दामान-ए-साहिल से निकलते हैं

हमारे हम-सफ़र हम से मुकद्दर हैं बस इतने पर

कि हम बच कर ग़ुबार-ए-राह-ए-मंज़िल से निकलते हैं

ग़ज़ब है ऐ ज़मीं तो उन हसीनों को निगल जाए

जो हुस्न-ए-ज़ौ-फ़िशाँ में माह-ए-कामिल से निकलते हैं

भरोसा कुछ नहीं 'महरूम' अनवार-ए-मसर्रत का

शरारे भी कभी तारों की महफ़िल से निकलते हैं

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In Hindi By Famous Poet Tilok Chand Mahroom. is written by Tilok Chand Mahroom. Complete Poem in Hindi by Tilok Chand Mahroom. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.