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ताइर-ए-दिल के लिए ज़ुल्फ़ का जाल अच्छा है - तिलोकचंद महरूम कविता - Darsaal

ताइर-ए-दिल के लिए ज़ुल्फ़ का जाल अच्छा है

ताइर-ए-दिल के लिए ज़ुल्फ़ का जाल अच्छा है

हीला-साज़ी के लिए दाना-ए-ख़ाल अच्छा है

दिल के तालिब नज़र आते हैं हसीं हर जानिब

उस के लाखों हैं ख़रीदार कि माल अच्छा है

ताब-ए-नज़्ज़ारा नहीं गो मुझे ख़ुद भी लेकिन

रश्क कहता है कि ऐसा ही जमाल अच्छा है

दिल में कहते हैं कि ऐ काश न आए होते

उन के आने से जो बीमार का हाल अच्छा है

मुतमइन बैठ न ऐ राह-रव-ए-राह-ए-उरूज

तिरा रहबर है अगर ख़ौफ़-ए-ज़वाल अच्छा है

न रही बे-ख़ुदी-ए-शौक़ में इतनी भी ख़बर

हिज्र अच्छा है कि 'महरूम' विसाल अच्छा है

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In Hindi By Famous Poet Tilok Chand Mahroom. is written by Tilok Chand Mahroom. Complete Poem in Hindi by Tilok Chand Mahroom. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.