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शहर से एक तरफ़ दूर बहुत - तिलोकचंद महरूम कविता - Darsaal

शहर से एक तरफ़ दूर बहुत

शहर से एक तरफ़ दूर बहुत

आज रोया दिल-ए-महजूर बहुत

दूर है सुब्ह शब-ए-ग़म ऐ दिल

है सितारों मैं अभी नूर बहुत

किस को मंज़ूर था रुस्वा होना

दिल के हाथों हुए मजबूर बहुत

मौत अय्याम-ए-जवानी में भी

नज़र आती थी मगर दूर बहुत

मुनहसिर वादी-ए-सीना पे नहीं

जज़्ब-ए-मूसा हो अगर तूर बहुत

एक ही वार के क़ाबिल निकला

यूँ तो कहने को हैं मंसूर बहुत

तुम को किस रंज ने मारा 'महरूम'

कि नज़र आते हो रंजूर बहुत

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In Hindi By Famous Poet Tilok Chand Mahroom. is written by Tilok Chand Mahroom. Complete Poem in Hindi by Tilok Chand Mahroom. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.