शहर से एक तरफ़ दूर बहुत
शहर से एक तरफ़ दूर बहुत
आज रोया दिल-ए-महजूर बहुत
दूर है सुब्ह शब-ए-ग़म ऐ दिल
है सितारों मैं अभी नूर बहुत
किस को मंज़ूर था रुस्वा होना
दिल के हाथों हुए मजबूर बहुत
मौत अय्याम-ए-जवानी में भी
नज़र आती थी मगर दूर बहुत
मुनहसिर वादी-ए-सीना पे नहीं
जज़्ब-ए-मूसा हो अगर तूर बहुत
एक ही वार के क़ाबिल निकला
यूँ तो कहने को हैं मंसूर बहुत
तुम को किस रंज ने मारा 'महरूम'
कि नज़र आते हो रंजूर बहुत
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