काविशों से अमाँ मिले न मिले
काविशों से अमाँ मिले न मिले
फिर तिरा आस्ताँ मिले न मिले
अब क़फ़स ही को आशियाँ कहिए
राहत-ए-आशियाँ मिले न मिले
दिल से रहते हैं मशवरे दिन रात
हम-सुख़न हम-ज़बाँ मिले न मिले
महव-ए-फ़रियाद हम हैं आज कि फिर
फ़ुर्सत-ए-यक-फ़ुग़ाँ मिले न मिले
अलम-ए-आह सर-बुलंद है आज
कल हमारा निशाँ मिले न मिले
तू तो बेताब है मगर ऐ दिल
हो के वो मेहरबाँ मिले न मिले
ये ग़ज़ल 'जोश' को सुना 'महरूम'
फिर कोई नुक्ता-दाँ मिले न मिले
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