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इस का गिला नहीं कि दुआ बे-असर गई - तिलोकचंद महरूम कविता - Darsaal

इस का गिला नहीं कि दुआ बे-असर गई

इस का गिला नहीं कि दुआ बे-असर गई

इक आह की थी वो भी कहीं जा के मर गई

ऐ हम-नफ़स न पूछ जवानी का माजरा

मौज-ए-नसीम थी इधर आई उधर गई

दाम-ए-ग़म-ए-हयात में उलझा गई उमीद

हम ये समझ रहे थे कि एहसान कर गई

इस ज़िंदगी से हम को न दुनिया मिली न दीं

तक़दीर का मुशाहिदा करते गुज़र गई

अंजाम-ए-फ़स्ल-ए-गुल पे नज़र थी वगरना क्यूँ

गुलशन से आह भर के नसीम-ए-सहर गई

बस इतना होश था मुझे रोज़-ए-विदा-ए-दोस्त

वीराना था नज़र में जहाँ तक नज़र गई

हर मौज-ए-आब-ए-सिंध हुई वक़्फ़-ए-पेच-ओ-ताब

'महरूम' जब वतन में हमारी ख़बर गई

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In Hindi By Famous Poet Tilok Chand Mahroom. is written by Tilok Chand Mahroom. Complete Poem in Hindi by Tilok Chand Mahroom. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.