इस पार जहान-ए-रफ़्तगाँ है
इस पार जहान-ए-रफ़्तगाँ है
इक दर्द की रात दरमियाँ है
आँखें हैं कि रहगुज़ार-ए-सैलाब
और दिल है कि डूबता मकाँ है
अच्छा है कि सिर्फ़ इश्क़ कीजे
ये उम्र तो यूँ भी राएगाँ है
किस याद की चाँदनी है दिल में
इक लहर सी ख़ून में रवाँ है
याद आया वहाँ गिरे थे आँसू
अब सब्ज़ा ओ गुल जहाँ जहाँ है
हर लहज़ा बदल रही है दुनिया
ऐ हुस्न-ए-सबात तू कहाँ है
दुख झेलो तो जी कड़ा ही रखना
दिल है तो हिसाब-ए-दोस्ताँ है
(624) Peoples Rate This