यहीं आना है भटकती हुई आवाज़ों को
यानी कुछ बात तो है कोह-ए-निदा में ऐसी
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Gulzar
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(674) Peoples Rate This
लफ़्ज़ की क़ैद से रिहा हो जा
ख़ाक होती हुई हस्ती से उठा
हिज्र था बार-ए-अमानत की तरह
दामन बचा रहे थे कि चेहरा भी जल गया
परी उड़ जाएगी और राजधानी ख़त्म होगी
कोई तासीर तो है इस की नवा में ऐसी
बदन में रूह की तर्सील करने वाले लोग
इन सुलगती हुई साँसों को नहीं देखते लोग
हमारी राह में बैठेगी कब तक तेरी दुनिया
रूठ कर आँख के अंदर से निकल जाते हैं
मौज-ए-ख़याल में न किसी जल-परी में आए