रूठ कर आँख के अंदर से निकल जाते हैं
अश्क बच्चों की तरह घर से निकल जाते हैं
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दामन बचा रहे थे कि चेहरा भी जल गया
हमारी राह में बैठेगी कब तक तेरी दुनिया
जैसे वीरान हवेली में हों ख़ामोश चराग़
अब ज़माने में मोहब्बत है तमाशे की तरह
कहीं शुऊर में सदियों का ख़ौफ़ ज़िंदा था
इन सुलगती हुई साँसों को नहीं देखते लोग
बदन में दिल था मुअल्लक़ ख़ला में नज़रें थीं
सब्ज़ पेड़ों को पता तक नहीं चलता शायद
फेंक दे ख़ुश्क फूल यादों के
दर्द जब से दिल-नशीं है इश्क़ है