फेंक दे ख़ुश्क फूल यादों के
ज़िद न कर तू भी बे-वफ़ा हो जा
Mir Taqi Mir
Gulzar
Rahat Indori
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(667) Peoples Rate This
ज़र का बंदा हो कि महरूमी का मारा हुआ शख़्स
इन सुलगती हुई साँसों को नहीं देखते लोग
कल जहाँ दीवार ही दीवार थी
यहीं आना है भटकती हुई आवाज़ों को
मैं तिरे हिज्र से निकलूँगा तो मर जाऊँगा
याद और ग़म की रिवायात से निकला हुआ है
कहीं शुऊर में सदियों का ख़ौफ़ ज़िंदा था
अब ज़माने में मोहब्बत है तमाशे की तरह
बदन में दिल था मुअल्लक़ ख़ला में नज़रें थीं
दामन बचा रहे थे कि चेहरा भी जल गया
परी उड़ जाएगी और राजधानी ख़त्म होगी