हिज्र था बार-ए-अमानत की तरह
सो ये ग़म आख़िरी हिचकी से उठा
Wasi Shah
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Rahat Indori
Parveen Shakir
Gulzar
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(630) Peoples Rate This
बदन में रूह की तर्सील करने वाले लोग
बदन में दिल था मुअल्लक़ ख़ला में नज़रें थीं
फेंक दे ख़ुश्क फूल यादों के
इन सुलगती हुई साँसों को नहीं देखते लोग
लफ़्ज़ की क़ैद से रिहा हो जा
दामन बचा रहे थे कि चेहरा भी जल गया
मैं तिरे हिज्र से निकलूँगा तो मर जाऊँगा
दर्द जब से दिल-नशीं है इश्क़ है
मौज-ए-ख़याल में न किसी जल-परी में आए
कहीं शुऊर में सदियों का ख़ौफ़ ज़िंदा था
जैसे वीरान हवेली में हों ख़ामोश चराग़
ज़र का बंदा हो कि महरूमी का मारा हुआ शख़्स