अब ज़माने में मोहब्बत है तमाशे की तरह
इस तमाशे से बहलता नहीं तू भी मैं भी
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Wasi Shah
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Javed Akhtar
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(639) Peoples Rate This
कहीं शुऊर में सदियों का ख़ौफ़ ज़िंदा था
हमारी राह में बैठेगी कब तक तेरी दुनिया
रूठ कर आँख के अंदर से निकल जाते हैं
जैसे वीरान हवेली में हों ख़ामोश चराग़
यहीं आना है भटकती हुई आवाज़ों को
दर्द जब से दिल-नशीं है इश्क़ है
कोई तासीर तो है इस की नवा में ऐसी
सब्ज़ पेड़ों को पता तक नहीं चलता शायद
याद और ग़म की रिवायात से निकला हुआ है
बदन में रूह की तर्सील करने वाले लोग
लफ़्ज़ की क़ैद से रिहा हो जा