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मौज-ए-ख़याल में न किसी जल-परी में आए - तौक़ीर तक़ी कविता - Darsaal

मौज-ए-ख़याल में न किसी जल-परी में आए

मौज-ए-ख़याल में न किसी जल-परी में आए

दरिया के सारे रंग मिरी तिश्नगी में आए

फिर एक रोज़ आन मिला अब्र-ए-हम-मिज़ाज

मिट्टी नुमू-ए-पज़ीर हुई ताज़गी में आए

दामन बचा रहे थे कि चेहरा भी जल गया

किस आग से गुज़र के तिरी रौशनी में आए

ये मैं हूँ मेरे ख़्वाब ये शमशीर-ए-बे-नियाम

अब तेरा इख़्तियार है जो तेरे जी में आए

इक बार इस जहान से मिल लेना चाहिए

ऐसा न हो कि फिर ये फ़क़त ख़्वाब ही में आए

आँखों में वो लपक है न सीने में वो अलाव

इस बार उस से कहना ज़रा सादगी में आए

तन्हा उदास देख रहा था मैं चाँद को

ये फूल बहते बहते कहाँ से नदी में आए

थक-हार कर गिरा था कि आँखों में फिर गए

'तौक़ीर' वो मक़ाम जो आवारगी में आए

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In Hindi By Famous Poet Tauqeer Taqi. is written by Tauqeer Taqi. Complete Poem in Hindi by Tauqeer Taqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.