लफ़्ज़ की क़ैद से रिहा हो जा
लफ़्ज़ की क़ैद से रिहा हो जा
आ मिरी आँख से अदा हो जा
फेंक दे ख़ुश्क फूल यादों के
ज़िद न कर तू भी बे-वफ़ा हो जा
ख़ुश्क पेड़ों को कटना पड़ता है
अपने ही अश्क पी हरा हो जा
छेड़ इस हब्स में महकती ग़ज़ल
और दर खोलती हवा हो जा
संग बरसा रहे हैं शहर के लोग
तू भी यूँ हाथ उठा दुआ हो जा
ख़ुद को पहचान इधर उधर न भटक
अपने मरकज़ पे दायरा हो जा
और फिर हो गया मैं आईना-रू
उस ने इक बार ही कहा हो जा
कहीं अंदर से आज भी 'तौक़ीर'
इक सदा आती है मिरा हो जा
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