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ख़ाक होती हुई हस्ती से उठा - तौक़ीर तक़ी कविता - Darsaal

ख़ाक होती हुई हस्ती से उठा

ख़ाक होती हुई हस्ती से उठा

इश्क़ का बोझ भी मिट्टी से उठा

हिज्र था बार-ए-अमानत की तरह

सो ये ग़म आख़िरी हिचकी से उठा

लौ तिरे ब'अद बढ़ी अश्कों की

शोला-ए-इश्क़ भी पानी से उठा

दिल ने आबाद किया इश्क़-आबाद

ख़ाक हो कर उसी बस्ती से उठा

दिल उसी दर्द की ज़ुल्फ़ों का असीर

हाए वो दर्द जो पस्ली से उठा

या मुझे क़ैद-ए-अनासिर से निकाल

या मिरी ख़ाक को पस्ती से उठा

आख़िरी वक़्त में हर रंज का बोझ

ख़म-शुदा रीढ़ की हड्डी से उठा

इस से पहले कि मिरा नाम आ जाए

मुझे इस डोलती कश्ती से उठा

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In Hindi By Famous Poet Tauqeer Taqi. is written by Tauqeer Taqi. Complete Poem in Hindi by Tauqeer Taqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.