पलकों को तेरी शर्म से झुकता हुआ मैं देखूँ
पलकों को तेरी शर्म से झुकता हुआ मैं देखूँ
धड़कन को अपने दिल की रुकता हुआ मैं देखूँ
पीने का शौक़ मुझ को हरगिज़ नहीं है मगर
क़दमों को मय-कदे पे रुकता हुआ मैं देखूँ
या-रब करम की बारिश इक बार ऐसी कर दे
हर फूल को चमन में हँसता हुआ मैं देखूँ
जब भी उठें दुआ की ख़ातिर ये हाथ मेरे
आँखों को आँसुओं से भरता हुआ मैं देखूँ
'तौक़ीर' मेरे रब का कितना करम है मुझ पे
ख़ुशियों को संग अपने चलता हुआ मैं देखूँ
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