वो रौशनी जो शफ़क़ का लिबास छोड़ गई
वो रौशनी जो शफ़क़ का लिबास छोड़ गई
मिरे लिए तो वो लम्हे उदास छोड़ गई
बहार दर्द भरा इक़्तिबास छोड़ गई
हर इक शजर का बदन बे-लिबास छोड़ गई
अजीब लहर में हम ने हवा का साथ दिया
अजीब मोड़ पे अब ग़म-शनास छोड़ गई
नसीम-ए-सुब्ह गुलों को गुदाज़ देती रही
मगर दिलों की फ़ज़ा को उदास छोड़ गई
फिर इस से उगला सफ़र रौशनी का था 'तौक़ीर'
मुझे जहाँ वो सितारा-शनास छोड़ गई
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