ठहरे पानी पे हाथ मारा था
ठहरे पानी पे हाथ मारा था
दोस्तों को कहाँ पुकारा था
छोड़ आया था मेज़ पर चाय
ये जुदाई का इस्तिआरा था
रूह देती है अब दिखाई मुझे
आईना आग से गुज़ारा था
मेरी आँखों में आ के राख हुआ
जाने किस देस का सितारा था
वो तो सदियों से मेरी रूह में था
अक्स पत्थर से जो उभारा था
ज़िंदगी और कुछ न थी 'तौक़ीर'
तिफ़्ल के हाथ में ग़ुबारा था
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