रात मेरे पास तुझ को देख कर
देर तक रूठी रहीं तन्हाइयाँ
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अक्स-ए-ज़ंजीर पे जाँ देने के पहलू दूँगा
नज़र नज़र से मिला कर शराब पीते हैं
चल कर कभी हमारे अंधेरे भी देखिए
फिर तिरे हिज्र के जज़्बात ने अंगड़ाई ली
सदियों लहू से दिल की हिकायत लिखी गई