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किसी दयार किसी दश्त में सबा ले चल - तस्लीम इलाही ज़ुल्फ़ी कविता - Darsaal

किसी दयार किसी दश्त में सबा ले चल

किसी दयार किसी दश्त में सबा ले चल

कहीं क़याम न कर मुझ को जा-ब-जा ले चल

मैं अपनी आँखें भी रख आऊँ उस की चौखट पर

ये सारे ख़्वाब मिरे और रत-जगा ले चल

मैं अपनी राख उड़ाऊँगा जल बुझूँगा वहीं

मुझे भी उस की गली में ज़रा हवा ले चल

हथेलियों की लकीरों में उस का चेहरा है

ये मेरे हाथ लिए जा मिरी दुआ ले चल

बदन की ख़ाक इन आँखों की इक अमानत है

क़दम उठें न उठें ज़िंदगी सँभाले चल

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In Hindi By Famous Poet Tasleem Ilahi Zulfi. is written by Tasleem Ilahi Zulfi. Complete Poem in Hindi by Tasleem Ilahi Zulfi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.