Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_3ce8b04cdef62e5f23bb39f52e5011f8, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
जैसे कश्ती और इस पर बादबाँ फैले हुए - तस्लीम इलाही ज़ुल्फ़ी कविता - Darsaal

जैसे कश्ती और इस पर बादबाँ फैले हुए

जैसे कश्ती और इस पर बादबाँ फैले हुए

मेरे सर पर इस तरह हैं आसमाँ फैले हुए

चल रहे हैं धूप से तपती हुई सड़कों पे लोग

और साए साएबाँ-दर-साएबाँ फैले हुए

देखिए कब तक रहे तन्हा परिंदे की उड़ान

हैं समुंदर ही समुंदर बे-कराँ फैले हुए

जागती आँखों के ख़्वाब और तेरे बालों के गुलाब

मेरे बिस्तर पर हैं अब भी मेरी जाँ फैले हुए

सानेहा ये है कि अब तक वाक़िआ कोई नहीं

तज़्किरे हैं दास्ताँ-दर-दास्ताँ फैले हुए

मैं तो सारी उम्र उस की सम्त में चलता रहा

फ़ासले हैं फिर भी 'ज़ुल्फ़ी' दरमियाँ फैले हुए

(647) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Tasleem Ilahi Zulfi. is written by Tasleem Ilahi Zulfi. Complete Poem in Hindi by Tasleem Ilahi Zulfi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.