क़ुर्बां-गाह-ए-अम्न
खेत सोते हैं
फ़ज़ा में करगसों का एक झुण्ड
तैरता आता है मंडलाता हुआ
सोई ज़मीं
आँख में तन्हाइयों की वुसअ'तें
झोंपड़ी में एक माँ
इक जवाँ अफ़्सुर्दगी
सीना-ए-उर्यां से लिपटाए हुए
एक जान-ए-ना-तवाँ
आँख पर नम होंट लर्ज़ां
पी मिरी जाँ पी
जवाँ हो
मुंतज़िर है तेरी क़ुर्बां-गाह-ए-अम्न
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