क्या मैं जुगनू को आफ़्ताब करूँ
क्या मैं जुगनू को आफ़्ताब करूँ
या चराग़ों का इंतिख़ाब करूँ
दिल ये कहता है इंक़लाब करूँ
पेश उस को मैं इक गुलाब करूँ
वक़्त ने क्या नहीं दिया मुझ को
बे-सबब वक़्त क्यूँ ख़राब करूँ
सर पटक कर अब उस के कूचे में
अपनी तक़दीर से हिसाब करूँ
मैं करूँ फिर कोई सवाल नया
और फिर उस को ला-जवाब करूँ
ज़िंदगी ने तो हार मान ही ली
कम-से-कम मौत कामयाब करूँ
सब के चेहरे पे एक चेहरा है
किस का चेहरा मैं बे-नक़ाब करूँ
(1873) Peoples Rate This