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पागल वहशी तन्हा तन्हा उजड़ा उजड़ा दिखता हूँ - तरकश प्रदीप कविता - Darsaal

पागल वहशी तन्हा तन्हा उजड़ा उजड़ा दिखता हूँ

पागल वहशी तन्हा तन्हा उजड़ा उजड़ा दिखता हूँ

कितने आईने बदले हैं मैं वैसे का वैसा हूँ

फिर से मुझ को पागल-पन का दौरा पड़ने वाला है

फिर से तुम्हारी यादों की अलमारी खोले बैठा हूँ

अपने सिवा न किसी को कुछ भी समझा समझूँगा शायद

मैं ऐसे ही जीती है मैं भी ऐसे ही जीता हूँ

मेरा पिंजरा खोल दिया है तुम भी अजीब शिकारी हो

अपने ही पर काट लिए हैं मैं भी अजीब परिंदा हूँ

मेरे यहाँ का इक रस्ता मेरे अपने अंदर जाता है

और मैं इसी रस्ते पे न चलने की ज़िद ले कर बैठा हूँ

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In Hindi By Famous Poet Tarkash Pradeep. is written by Tarkash Pradeep. Complete Poem in Hindi by Tarkash Pradeep. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.