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जीना अब दुश्वार है बाबा - तारिक़ राशीद दरवेश कविता - Darsaal

जीना अब दुश्वार है बाबा

जीना अब दुश्वार है बाबा

फ़िक्रों की भर-मार है बाबा

खोटे सिक्के ख़ूब चलेंगे

अब अपनी सरकार है बाबा

दीन को बेचो दुनिया बेचो

अब ये कारोबार है बाबा

आज की ये तहज़ीब तो जैसे

गिरती हुई दीवार है बाबा

मुफ़्लिस की आवाज़ दबी है

पैसों की झंकार है बाबा

किस को सलीक़ा है पीने का

कौन यहाँ मय-ख़्वार है बाबा

अपना ही 'दरवेश' तो शायद

देखो सू-ए-दार है बाबा

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In Hindi By Famous Poet Tariq Rashid Darvesh. is written by Tariq Rashid Darvesh. Complete Poem in Hindi by Tariq Rashid Darvesh. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.