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न तुम मिले थे तो दुनिया चराग़-पा भी न थी - तारिक़ क़मर कविता - Darsaal

न तुम मिले थे तो दुनिया चराग़-पा भी न थी

न तुम मिले थे तो दुनिया चराग़-पा भी न थी

ये मेहरबाँ तो नहीं थी मगर ख़फ़ा भी न थी

अजब ग़रीबी के आलम में मर गया इक शख़्स

कि सर पे ताज था दामन में इक दुआ भी न थी

न इतना बिखरी थी पहले किताब-ए-हस्ती भी

और इतनी तेज़ मिरे शहर की हवा भी न थी

ख़ुशी तो ये है कि पास-ए-अदब रखा हम ने

मलाल ये है कि अपनी कोई ख़ता भी न थी

मिरी हयात कहाँ तक तिरी सफ़ाई दूँ

कि तू ख़राब नहीं थी तो पारसा भी न थी

भला किया कि हमें ज़हर दे दिया तुम ने

अलावा इस के हमारी कोई दवा भी न थी

बदल रहा है मुसलसल मिज़ाज दुनिया का

ये बेवफ़ा थी मगर ऐसी बे-हया भी न थी

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In Hindi By Famous Poet Tariq Qamar. is written by Tariq Qamar. Complete Poem in Hindi by Tariq Qamar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.