न तुम मिले थे तो दुनिया चराग़-पा भी न थी
न तुम मिले थे तो दुनिया चराग़-पा भी न थी
ये मेहरबाँ तो नहीं थी मगर ख़फ़ा भी न थी
अजब ग़रीबी के आलम में मर गया इक शख़्स
कि सर पे ताज था दामन में इक दुआ भी न थी
न इतना बिखरी थी पहले किताब-ए-हस्ती भी
और इतनी तेज़ मिरे शहर की हवा भी न थी
ख़ुशी तो ये है कि पास-ए-अदब रखा हम ने
मलाल ये है कि अपनी कोई ख़ता भी न थी
मिरी हयात कहाँ तक तिरी सफ़ाई दूँ
कि तू ख़राब नहीं थी तो पारसा भी न थी
भला किया कि हमें ज़हर दे दिया तुम ने
अलावा इस के हमारी कोई दवा भी न थी
बदल रहा है मुसलसल मिज़ाज दुनिया का
ये बेवफ़ा थी मगर ऐसी बे-हया भी न थी
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